आनंद का स्रोत: तू क्यों उदास है?


हाल ही के कुछ वर्षों में विशेषकर महानगरों में आत्महत्याओं के जो मामले सामने आए हैं। वह बेहद चौंकाने वाले हैं, विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में आत्महत्या करने वाले लोगों में भारत का भी स्थान आता है। जीवन की वास्तविकता का ज्ञान ना होना कम समय में अधिक पाने की चाह सहनशीलता की कमी हर क्षेत्र में गला काटकर प्रतिस्पर्धा और पारिवारिक कलह आदि के चलते युवा अवसाद का शिकार हो जाते हैं। आज का उद्देश्य शिक्षा में मनुष्य का कनेक्शन परम पिता परमेश्वर से काट दिया परमात्मा ही एकमात्र आनंद का तथा आत्म शक्ति का स्रोत है। परमात्मा से जुड़कर ही मनुष्य को अपने बहुमूल्य जीवन की वास्तविकता का ज्ञान हो सकता है।

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मनुष्य की भौतिक सामाजिक एवं आध्यात्मिक 3 वास्तविकता हैं।


मनुष्य की तीन वास्तविकता आएं हैं। मनुष्य एक भौतिक प्राणी हैं, तथा मनुष्य एक अध्यात्मिक प्राणी है। मनुष्य की तीनों वास्तविकताओं के संतुलित विकास से पूर्णता गुणात्मक व्यक्ति का निर्माण होता है। उद्देश्य पूर्ण शिक्षा के द्वारा मनुष्य की भौतिक सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों वास्तविकताओं का संतुलित विकास किया जा सकता है।

वह शक्ति हमें दो दयानिधे कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं।


जीने की कला वह है, जब हम हर विपरीत परिस्थिति को पलट कर सही कर दें। विपरीत परिस्थितियों तो जीवन में आनी ही चाहिए ताकि हम उन्हें पलट कर सही कर लेना सीख सकें। यदि हम अपना दृष्टिकोण संतुलित रखें, तो विपरीत परिस्थिति तो हम बेहद लाभान्वित हो सकते हैं। जो व्यक्ति कठिनाइयों से भरी परिस्थितियों में भी अपने दायित्वों का पालन बखूबी कर रहा हो। वह निश्चित रूप से अंदर से मजबूत किसमें के संतुलित व्यक्ति के रूप में संसार में पहचाना जाएगा। प्रत्येक परिस्थिति में अपने कर्तव्य बोध का एहसास ही मनुष्य को वह आंतरिक शक्ति प्रदान करता है। जिससे वह निराशा व पराजित मन है, स्थिति से बाहर निकल पाता है। हमें भगवान से यह सुंदर प्रार्थना करनी चाहिए, कि वह शक्ति हमें दो दयानिधे कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं पर पीड़ा और हम शरीर को तो अंत कर सकते हैं लेकिन आत्मा अजर अमर है।

परोपकार में यह जीवन सफल बना जाए।


अच्छा ही नहीं होता है, दुख और निराशा भी इसके अंग हैं, कई बार सब कुछ सही होते हुए भी अचानक चीजें उलट-पुलट ऐसे में अनेक लोग तनाव ग्रस्त होकर आत्महत्या कर लेते हैं। दरअसल लोग दुख और परेशानी के भीतर की सकारात्मकता को देखना नहीं चाहते। क्या जीवन इतना सस्ता हो गया है? कि इसे राह चलते कहीं भी आत्महत्या द्वारा समाप्त कर दिया जाए। यही दुस्साहस यदि कोई व्यक्ति मौत को गले लगाए बिना खुश होकर और सकारात्मक तरीके से समस्याओं को सुलझाने में करें, तो उसे जीवन में सफलता व आनंद दोनों मिलते हैं। हमें यह हमेशा स्मरण रखना चाहिए कि हम मात्र शरीर ही नहीं वरन हम एक अजर अमर आत्मा है। कोई निराश व्यक्ति आत्महत्या के द्वारा अपने शरीर का तो नाश कर सकता है लेकिन आत्मा को नष्ट नहीं कर सकता।

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हमें जीवन खींचकर जीना चाहिए या पूरे आत्मविश्वास से?

सेंट पीटर्सबर्ग की एक यूनिवर्सिटी के एक शोध के मुताबिक जिन लोगों का व्यवहार सकारात्मक व भावनात्मक होता है। वे शारीरिक व मानसिक रोगों से कम संक्रमित होते हैं, वैज्ञानिक डॉक्टर कोहेन भी मानते हैं कि ऊर्जावान व खुशमिजाज रहने वाले व्यक्तियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है। कुछ चीजें हमारी पहुंच से बाहर होती हैं, व्यक्ति अपने माता-पिता व हालात को सकता लेकिन यह उसी पर निर्भर करता है कि वह जिंदगी की चुनौतियों को खींचकर सामना करता है या जिम्मेदारी और आत्मविश्वास से।


जीवन को विजेता या पराजित की तरह जीने का निर्णय हमारे हाथ में है।

जॉर्ज एलियन का कहना है, स्वास्थ्य प्रसन्नता और सफलता हर आदमी के जूझने की क्षमता पर निर्भर होती है। बड़ी बात यह नहीं है, कि जीवन में क्या घटित होता है बल्कि यह है कि जो घटित होता है। हम उनका सामना कैसे करते हैं, जिंदगी के हालात को चुनना व्यक्ति के वश में नहीं है, लेकिन नजरिया चुनना हमेशा आपके अधिकार में होता है, यह व्यक्ति का अपना चुनाव है कि वह विपरीत परिस्थितियों से भरी जिंदगी के साथ विजेता की तरह व्यवहार करें या पराजित की तरह। व्यक्ति की किस्मत उसके आत्मविश्वास और कर्म से बनी होती है। वह इन में जितने खूबसूरत रंग भरता जाएगा जिंदगी उतने ही खूबसूरत हो कर उसका जोश व उत्साह से स्वागत करेगी।

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अध्यात्म मार्तंड विश्व कला विभूषित वर्तमान सद्गुरु स्वतंत्रदेव जी महाराज


हमारे प्रत्येक कार्य व्यवसाय परमात्मा की सुंदर प्रार्थना से बने।


जीवन में उत्साह सबसे बड़ी शक्ति है तथा निराशा सबसे बड़ी कमजोरी है। आइए रोजाना कि अपने प्रत्येक कार्य व्यवसाय को परमात्मा की सुंदर प्रार्थना से बनाएं। परमपिता परमात्मा नहीं सारी सृष्टि के साथ मानव समाज निर्मित किया है। समाज की सेवा एक प्रकार की परमात्मा की प्रार्थना तथा पूजा ही तो है।

लेखक – डॉक्टर जगदीश गांधी

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